केरल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : निजी कॉलेज के अधिकारियों को लोक सेवक घोषित किया


गणेश कुमार स्वामी   2024-12-17 07:13:32



केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि निजी फार्मेसी कॉलेजों के अधिकारियों, जो प्रवेश, शुल्क निर्धारण जैसे कार्यों का संचालन करते हैं, को लोक सेवक माना जाएगा। यह निर्णय भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act, PC Act) के तहत आया है और इसका सीधा असर शिक्षा संस्थानों पर होगा।

पृष्ठभूमि : क्या है पूरा मामला?

मामला नाजरेथ फार्मेसी कॉलेज से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कॉलेज अधिकारियों ने सरकार द्वारा आवंटित सीटों पर पात्र छात्रों को प्रवेश नहीं दिया और कैपिटेशन शुल्क (अतिरिक्त फीस) लेकर निजी छात्रों को सीटें बेचीं। याचिकाकर्ता ने इसे केरल मेडिकल (निजी चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश और शुल्क नियंत्रण) अधिनियम, 2017 और केरल प्रोफेशनल कॉलेज अधिनियम, 2006 का उल्लंघन बताया।

उन्होंने इस मामले में सतर्कता निदेशालय (Vigilance Department) को शिकायत दी, लेकिन जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने कोट्टायम की विशेष अदालत का रुख किया।

केरल हाईकोर्ट की व्याख्या : लोक सेवक की परिभाषा

जस्टिस के. बाबू ने अपने फैसले में कहा, कि निजी कॉलेजों में प्रवेश और शुल्क निर्धारण का कार्य कानून के अधीन है, जो राज्य का कार्य (State Function) है।

लोक सेवक की परिभाषा :

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 2(बी) के तहत, लोक कर्तव्य वह है जिसका निर्वहन राज्य, जनता या समाज के हित में किया जाता है।

धारा 2(सी)(vii) के तहत, कोई भी व्यक्ति जो सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है, लोक सेवक होता है।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संस्था राज्य के कानून के तहत किसी सार्वजनिक कर्तव्य का पालन कर रही है, तो वह लोक सेवक मानी जाएगी।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कॉलेज ने सरकार द्वारा निर्धारित सीटों पर पात्र छात्रों को प्रवेश देने से इनकार कर दिया और कैपिटेशन शुल्क के माध्यम से अन्य छात्रों को दाखिला दिया।

उन्होंने इसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 406 और 409 (आपराधिक विश्वासघात और गबन) का उल्लंघन बताया।

विजिलेंस विभाग ने मामले की जांच करने के लिए धारा 17A के तहत अनुमति मांगी, लेकिन सरकार ने कहा कि यह मामला प्रवेश पर्यवेक्षण समिति के अंतर्गत आता है और जांच को रोकने का आदेश दिया।

न्यायालय की टिप्पणी : धारा 17A की व्याख्या

हाईकोर्ट ने कहा, कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A केवल उन्हीं मामलों पर लागू होती है जो लोक सेवकों द्वारा उनके आधिकारिक कार्यों या निर्णयों से संबंधित हैं।

अदालत ने यह भी कहा, कि आरोपी अधिकारियों का कार्य इसके दायरे में नहीं आता, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से राज्य के कानूनों और नियमों का उल्लंघन है।

फैसले का असर : सतर्कता जांच का आदेश

हाईकोर्ट ने विजिलेंस विभाग को मामले की प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry) करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर गहराई से जांच की जरूरत है ताकि यह तय हो सके कि दोषी कौन हैं।

शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव : एक नयी मिसाल

यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता लाने का एक बड़ा कदम माना जा रहा है। निजी संस्थानों में प्रवेश और शुल्क निर्धारण जैसे कार्य अब अधिक निगरानी और जांच के दायरे में आ सकते हैं।