जमीन मुआवजे में समानता का न्याय : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


गणेश कुमार स्वामी   2024-12-17 07:06:58



हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28-ए के तहत मुआवजे की पुनःनिर्धारण याचिका पर स्पष्टता दी। कोर्ट ने कहा कि धारा 28-ए के तहत पुनःनिर्धारण का दावा सिर्फ रिफरेंस कोर्ट के फैसले पर आधारित होने की बाध्यता नहीं है, बल्कि हाईकोर्ट द्वारा मुआवजे में वृद्धि के आधार पर भी किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि : कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे परियोजना

साल 2004 में, कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे परियोजना के तहत पंजाब और हरियाणा के किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया। शुरू में, उन्हें ₹12,50,000 प्रति एकड़ का मुआवजा दिया गया। लेकिन 2016 में, कुछ जमीन मालिकों ने इसे चुनौती दी, और हाईकोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर ₹19,91,300 प्रति एकड़ कर दिया।

याचिकाकर्ता का दावा और विवाद का आरंभ

जो जमीन मालिक पहले धारा 18 के तहत रिफरेंस नहीं कर पाए थे, उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के आधार पर धारा 28-ए के तहत मुआवजे की पुनःनिर्धारण की मांग की। 2020 में, भूमि अधिग्रहण कलेक्टर (LAC) ने इस मांग को स्वीकार करते हुए बढ़ा हुआ मुआवजा मंजूर कर दिया।

हालांकि, हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (HSIIDC) ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाईकोर्ट का फैसला : विवाद का केंद्र

हाईकोर्ट ने HSIIDC के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा, कि धारा 28-ए का लाभ केवल रिफरेंस कोर्ट द्वारा बढ़ाए गए मुआवजे पर ही लागू होता है, न कि हाईकोर्ट या अन्य अपीलीय न्यायालयों द्वारा। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रामसिंभाई जेरामभाई बनाम गुजरात राज्य (2018) मामले का हवाला दिया।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और नया दृष्टिकोण

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हाईकोर्ट का फैसला गलत है क्योंकि रामसिंभाई जेरामभाई मामले में दी गई व्याख्या धारा 28-ए के उद्देश्य के खिलाफ है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य फैसले, यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रदीप कुमारी (1995) पर जोर दिया, जिसमें धारा 28-ए को गरीब और अशिक्षित जमीन मालिकों के लिए समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था।

जस्टिस बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि धारा 28-ए का उद्देश्य समानता सुनिश्चित करना और सभी भूमि मालिकों को समान मुआवजा प्रदान करना है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : समानता की दिशा में कदम

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि :

धारा 28-ए का लाभ हाईकोर्ट द्वारा बढ़ाए गए मुआवजे पर भी लागू होगा।

यह प्रावधान गरीब और अशिक्षित भूमि मालिकों को समानता का अधिकार देने के लिए बनाया गया है।

प्रदीप कुमारी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले को अधिक प्रभावी मानते हुए, कोर्ट ने इसे लागू करने का निर्देश दिया।

फैसले का महत्व : भूमि मालिकों के अधिकारों की सुरक्षा

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गरीब और अशिक्षित जमीन मालिकों के लिए बड़ी राहत है, जो पहले रिफरेंस कोर्ट में याचिका दाखिल करने से वंचित रह जाते थे। यह निर्णय मुआवजे की समानता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न केवल धारा 28-ए की व्याख्या को विस्तार दिया है, बल्कि यह सुनिश्चित किया है कि सभी जमीन मालिकों को समान अवसर और न्याय मिले। यह फैसला उन भूमि मालिकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा, जो अब तक मुआवजे में समानता के लिए संघर्ष कर रहे थे।