क्या भारत लौटेगा समवर्ती चुनावों की ओर? एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक कल होगा पेश
गणेश कुमार स्वामी 2024-12-17 06:52:53
क्या भारत अब सभी चुनाव एक साथ कराने की दिशा में कदम बढ़ाने जा रहा है? संसद में मंगलवार को एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है। इस विधेयक को वन नेशन, वन इलेक्शन के नाम से जाना जा रहा है।
संविधान संशोधन विधेयक 2024 का परिचय
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल संसद में संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 पेश करेंगे। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है।
यह विधेयक पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के समक्ष पेश किया जाएगा, और उसके बाद इसे व्यापक चर्चा के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेजे जाने का प्रस्ताव रखा जाएगा।
संयुक्त समिति का गठन और भूमिका
संयुक्त समिति का गठन विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या के आधार पर होगा। भाजपा, जो कि सबसे बड़ी पार्टी है, को इस समिति की अध्यक्षता और सदस्यों की संख्या में प्राथमिकता मिलेगी।
इसके लिए लोकसभा अध्यक्ष राजनीतिक दलों से सदस्य नामित करने को कहेंगे। यदि दल अपनी ओर से सदस्य नहीं भेजते हैं, तो वे समिति में शामिल होने का अधिकार खो सकते हैं।
गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति
गृह मंत्री अमित शाह, जो इस पहल के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति का हिस्सा रहे हैं, विधेयक पेश किए जाने के समय संसद में मौजूद रह सकते हैं। इस समिति का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था।
कोविंद की अध्यक्षता में की गई चर्चाओं में पाया गया कि 32 राजनीतिक दल एक राष्ट्र, एक चुनाव का समर्थन करते हैं, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया।
कैबिनेट का निर्णय : स्थानीय चुनावों पर विचार बाकी
पिछले हफ्ते, केंद्रीय कैबिनेट ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के लिए दो विधेयकों को मंजूरी दी। हालांकि, स्थानीय निकाय चुनावों के संदर्भ में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
इतिहास: समवर्ती चुनावों का भारत में अतीत
1951 से 1967 तक भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। 1967 के बाद सरकारों के गिरने और अलग-अलग चुनाव कराने की प्रवृत्ति ने इसे समाप्त कर दिया।
1983 से लेकर अब तक इस पर कई रिपोर्ट्स और अध्ययन हो चुके हैं, जिनमें यह सुझाव दिया गया है कि भारत को समवर्ती चुनावों की ओर लौटना चाहिए।
विधेयक की आगे की प्रक्रिया
संयुक्त समिति के गठन के बाद इसका कार्यकाल शुरू में 90 दिनों का होगा, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है। विधेयक में जनता और सांसदों से व्यापक विचार-विमर्श किया जाएगा।
समवर्ती चुनावों के लाभ और चुनौतियां
1 लाभ :
चुनावी खर्च में कमी।
बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में रुकावट से बचाव।
मतदाताओं में अधिक जागरूकता।
2 चुनौतियां :
सभी राज्यों की सहमति प्राप्त करना कठिन।
तकनीकी और कानूनी अड़चनें।
स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों का मिश्रण।
भारतीय लोकतंत्र के लिए नई दिशा?
एक राष्ट्र, एक चुनाव भारत के चुनावी इतिहास में एक क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है। यह पहल न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से बल्कि आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।