सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला : भरण-पोषण का अधिकार बना मौलिक अधिकार के समकक्ष


गणेश कुमार स्वामी   2024-12-13 03:33:47



सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के अधिकार को वित्तीय लेनदारों और अन्य वसूली प्रक्रियाओं के तहत प्राप्त अधिकारों पर प्राथमिकता दी। जस्टिस सूर्य कांत और उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार एक मौलिक अधिकार के समान है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जीवन के अधिकार से प्रवाहित होता है।

आर्थिक अधिकारों पर भरण-पोषण का प्राथमिकता अधिकार

पीठ ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार वित्तीय लेनदारों, सुरक्षित लेनदारों, और अन्य वसूली अधिकारधारकों पर वरीयता रखता है, चाहे वह Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Securities Interest Act, 2002 हो या Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 जैसे कानून। कोर्ट ने निर्देश दिया कि पत्नी और बच्चों को बकाया भरण-पोषण की राशि की प्राथमिकता के साथ संपत्तियों से भुगतान किया जाए।

फैमिली कोर्ट और हाई कोर्ट का आदेश

शुरुआत में फैमिली कोर्ट ने पत्नी को ₹6,000 प्रति माह और बच्चों को ₹3,000 प्रति माह की राशि भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया था। इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने इस राशि को बढ़ाकर पत्नी के लिए ₹1 लाख और प्रत्येक बच्चे के लिए ₹50,000 प्रति माह कर दिया। हाई कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर लिया कि पति एक व्यवसायी है और उसकी आय को देखते हुए यह राशि उचित है।

सुप्रीम कोर्ट का समायोजित आदेश

अपील के दौरान, पति ने आयकर रिटर्न प्रस्तुत करते हुए यह दावा किया कि व्यवसाय में नुकसान के कारण वह हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित राशि का भुगतान करने में असमर्थ है। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अंतरिम आदेश जारी करते हुए यह राशि घटाकर पत्नी के लिए ₹50,000 और बच्चों के लिए ₹25,000 प्रति माह कर दी। कोर्ट ने यह भी कहा, कि यह राशि न्यायसंगत और उचित है।

व्यावसायिक नुकसान पर कोर्ट की टिप्पणी

पति ने यह दावा किया कि उनके व्यवसाय (डायमंड फैक्ट्री) में नुकसान हुआ है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक तथ्यात्मक प्रश्न मानते हुए अंतरिम आदेश को अंतिम रूप दिया। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि पत्नी और बच्चों को हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित उच्च दर के अनुसार बकाया राशि का भुगतान भी किया जाए।

संपत्ति की नीलामी का प्रावधान

अगर पति भरण-पोषण की बकाया राशि का भुगतान करने में असफल रहता है, तो कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया है कि उसके अचल संपत्तियों की नीलामी कर बकाया राशि की वसूली की जाए। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि पत्नी और बच्चों को उनका अधिकार मिले।

मौलिक अधिकार से जोड़ा गया भरण-पोषण का अधिकार

कोर्ट ने भरण-पोषण के अधिकार को गरिमामय जीवन के अधिकार से जोड़ा और कहा, यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है। इस प्रकार, इसे किसी भी व्यावसायिक या वित्तीय लेनदार के अधिकार से ऊपर रखा गया है।

कोर्ट का अंतिम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि पत्नी और बच्चों को arrears यानी बकाया राशि का भुगतान 3 महीने के भीतर किया जाए। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि भरण-पोषण का अधिकार केवल कागजों तक सीमित न रह जाए, बल्कि व्यावहारिक रूप से लागू हो।

यह फैसला न केवल भरण-पोषण के अधिकार की संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि गरिमामय जीवन का अधिकार सर्वोच्च प्राथमिकता रखता है।