22 साल बाद पलटा फैसला : राजस्थान हाई कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में सास-ससुर की जमानत रद्द की
गणेश कुमार स्वामी 2024-12-10 06:03:21
राजस्थान हाई कोर्ट ने दहेज हत्या के 22 साल पुराने मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए, आरोपी सास और ससुर की जमानत रद्द कर दी। यह मामला 2001 में शादी के तीन साल के भीतर एक महिला की संदिग्ध मौत का है। कोर्ट ने पाया कि आरोपी इस घटना के संबंध में स्पष्टीकरण देने में असफल रहे और उन्होंने साक्ष्यों को नष्ट करने का प्रयास किया।
मामले की पृष्ठभूमि
साल 2001 में, एक नवविवाहिता की मौत उसके ससुराल के घर की चारदीवारी के भीतर हुई थी। मृतका के परिवार ने आरोप लगाया कि उसे दहेज के लिए लगातार प्रताड़ित किया गया और हत्या के बाद उसके शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार कर दिया गया, ताकि सबूत मिटाए जा सकें।
ट्रायल कोर्ट ने 2002 में आरोपी सास-ससुर को सबूतों की कमी का हवाला देकर बरी कर दिया। राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दायर की।
हाई कोर्ट का फैसला : आरोपी का दायित्व
हाई कोर्ट ने पाया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत, आरोपी पर यह दायित्व था कि वे यह बताएं कि महिला की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई।
कोर्ट ने कहा :
जब अपराध घर की चारदीवारी के भीतर होता है, तो आरोपी पर यह जिम्मेदारी होती है कि वे घटना की सटीक परिस्थितियों को स्पष्ट करें। साक्ष्य छिपाने और पुलिस या परिवार को सूचित किए बिना शव का अंतिम संस्कार करना, आरोपी के इरादों पर सवाल उठाता है।
दहेज हत्या के चार प्रमुख तत्व
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के चाबी कर्मकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2013) के मामले का हवाला देते हुए दहेज हत्या के चार आवश्यक तत्व गिनाए:
♦पीड़िता की मृत्यु जलने या शारीरिक चोट के कारण होनी चाहिए।
♦यह मृत्यु विवाह के सात वर्षों के भीतर होनी चाहिए।
♦मृत्यु से पहले दहेज के लिए प्रताड़ना होनी चाहिए।
♦यह प्रताड़ना दहेज की मांग से संबंधित होनी चाहिए।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में सभी तत्व पूरे होते हैं।
जल्दबाजी में किया गया अंतिम संस्कार
हाई कोर्ट ने कहा, कि शव का बिना पोस्टमार्टम जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करना इस बात का प्रमाण है कि आरोपी ने साक्ष्य छिपाने का प्रयास किया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उमा बनाम पुलिस उप-अधीक्षक (2021) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई अपराध घर की चारदीवारी के भीतर होता है, तो आरोपी को परिस्थितियों को स्पष्ट करना चाहिए। अगर वे ऐसा करने में असफल रहते हैं, तो यह संदेह का एक मजबूत आधार बनता है।
प्रकरण की सामाजिक प्रासंगिकता
कोर्ट ने यह भी कहा, कि दहेज हत्या भारतीय समाज में गहराई तक फैली समस्या है और ऐसे मामलों में न्याय प्रक्रिया को अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण के बजाय सामाजिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
आरोपियों की जमानत रद्द
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को अवैध और त्रुटिपूर्ण करार देते हुए सास-ससुर की जमानत रद्द कर दी और उन्हें सजा सुनाई।
यह फैसला दहेज प्रथा के खिलाफ एक सख्त संदेश है और यह सुनिश्चित करता है कि समाज में महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। हाई कोर्ट ने न केवल कानूनी प्रावधानों का पालन किया, बल्कि सामाजिक न्याय की भावना को भी बनाए रखा।