राजस्थान उच्च न्यायालय ने दो पैरों में पोलियो से पीड़ित महिला उम्मीदवार की अयोग्यता को बरकरार रखा
गणेश कुमार स्वामी 2024-12-07 07:00:15
राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में, दो पैरों में 61% पोलियो से पीड़ित एक महिला उम्मीदवार की याचिका को खारिज कर दिया। यह मामला उस महिला उम्मीदवार द्वारा महिला नर्स पद के लिए विशेष श्रेणी में आरक्षण की मांग करने से जुड़ा था। अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि यह पद केवल एक-पैर की विकलांगता वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षित था, और इसलिए महिला का आवेदन अयोग्य था। आइए जानते हैं इस मामले के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से।
विकलांगता के आधार पर आरक्षण की गाइडलाइन्स का पालन
राजस्थान उच्च न्यायालय की बेंच में न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने महिला उम्मीदवार की याचिका खारिज करते हुए कहा, कि महिला ने जिन गाइडलाइन्स के आधार पर आरक्षण की मांग की थी, वे स्पष्ट रूप से एक पैर की विकलांगता को ही पात्र मानती हैं। अदालत ने 7 जनवरी 2021 की गजट अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता (नर्स) के पद के लिए केवल एक पैर की विकलांगता को ही आरक्षण के लिए मान्य किया गया था। चूंकि महिला उम्मीदवार के दोनों पैरों में विकलांगता थी, इसलिए उन्हें इस पद के लिए अयोग्य माना गया।
कोविड-19 के दौरान अस्थायी सेवा का कोई लाभ नहीं
याचिकाकर्ता ने कोविड-19 महामारी के दौरान अस्थायी रूप से सेवा देने की बात उठाई थी, लेकिन अदालत ने इसे आधार मानकर कोई निर्णय नहीं लिया। अदालत ने कहा, कि सिर्फ इस वजह से कि महिला ने अस्थायी रूप से काम किया था, उसे इस पद के लिए आरक्षण का अधिकार नहीं मिल सकता। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अस्थायी सेवा से किसी उम्मीदवार का स्थायी अधिकार नहीं बनता।
समान विकलांगता वाले अन्य उम्मीदवारों के साथ समानता की मिसाल
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला उम्मीदवार की तरह, जिनके पास समान विकलांगता थी, अन्य उम्मीदवारों को भी इसी आधार पर अयोग्य ठहराया गया था। अगर अदालत याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देती, तो यह उन उम्मीदवारों के लिए उलटा भेदभाव होता, जिन्होंने कोर्ट में याचिका नहीं डाली थी। न्यायमूर्ति अरुण मोंगा ने इसे स्पष्ट रूप से कहा, कि यदि महिला की अयोग्यता को रद्द किया जाता, तो यह समान रूप से अयोग्य अन्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय होता।
आवेदन में नियमों का उल्लंघन
अदालत ने यह भी पाया कि महिला ने आवेदन करते वक्त न तो पद के विज्ञापन का विरोध किया था और न ही गाइडलाइन्स में संशोधन के लिए कोई चुनौती दी थी। जब गाइडलाइन्स स्पष्ट रूप से एक-पैर की विकलांगता को मान्यता देती हैं, तो उन्हें चुनौती न देकर इस पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता था। इसलिए, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए इसे नियमों का पालन करने का मामला बताया।
फैसले की अहम बातें
अदालत ने अपने फैसले में यह कहा, कि गाइडलाइन्स के अनुसार, महिला के दोनों पैरों में विकलांगता होने के कारण वह इस विशेष पद के लिए योग्य नहीं थीं। हालांकि, उन्होंने कोविड-19 के दौरान काम किया था, यह उनके अधिकार को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त नहीं था। अदालत ने यह भी माना कि अन्य समान रूप से अयोग्य उम्मीदवारों के साथ भेदभाव न करने के लिए इस फैसले को सही ठहराया।
राजस्थान उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक उदाहरण है कि कैसे सरकारी पदों के लिए आरक्षण और विकलांगता की गाइडलाइन्स का पालन किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की विकलांगता और सेवा का मूल्यांकन करते हुए अदालत ने यह साबित किया कि नियमों के खिलाफ किसी को विशेष लाभ नहीं दिया जा सकता।