ख्वाजा गरीब नवाज़ के 813वें उर्स की तैयारियां जोरों पर, प्रशासन और दरगाह प्रबंधन के साथ चर्चा
गणेश कुमार स्वामी 2024-11-23 02:56:56
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें गरीब नवाज़ के नाम से जाना जाता है, के 813वें उर्स की शुरुआत 27-28 दिसंबर से होगी। इस आयोजन को लेकर प्रशासन और दरगाह प्रबंधन सक्रिय हैं। परंपरागत रीति-रिवाज रबी-अल-अव्वल के चांद दिखने के साथ शुरू होंगे। इसके बाद छ: रातों तक महफिल खाना में अनुष्ठान और गुस्ल समेत अन्य धार्मिक रस्में होंगी। उर्स का समापन कुरान खानी और कुल समारोह के साथ होगा। यह जानकारी ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने दी।
प्रशासन और प्रबंधन की बैठक
दरगाह के खादिम सैयद अफ़शान चिश्ती ने बताया, कि जिला प्रशासन और दरगाह से जुड़े लोगों के साथ पुलिस अधीक्षक की अध्यक्षता में एक बैठक हुई। इस बैठक में उर्स के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधाओं और सुरक्षा को लेकर चर्चा की गई। वहीं, सैयद सरवर चिश्ती, सचिव, अंजुमन सैयद जादगान ने दरगाह समिति की समय-सारणी को लेकर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, कि सालभर के अनुष्ठानों में खादिम मुख्य भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन्हें समय-सारणी में ठीक से शामिल नहीं किया गया है।
सर्दियों में श्रद्धालुओं की सुविधा पर जोर
सर्दियों को देखते हुए उर्स के दौरान श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं। दरगाह क्षेत्र में साफ-सफाई, भीड़ प्रबंधन, और ठंड से बचाव के उपायों पर जोर दिया जा रहा है। प्रशासन ने सुनिश्चित किया है कि लाखों श्रद्धालुओं के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों।
ख्वाजा गरीब नवाज़ का ऐतिहासिक महत्व
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में सूफी परंपरा को मजबूत किया और अजमेर को अपनी शिक्षाओं का केंद्र बनाया। उनकी शिक्षाएं सुलह-ए-कुल यानी सभी के साथ शांति के सिद्धांत पर आधारित थीं। उनकी दरगाह हर साल लाखों श्रद्धालुओं को एकजुट करती है, जो सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
चुनौतियां और विवाद
इस वर्ष की तैयारियों के दौरान खादिम और दरगाह समिति के बीच तालमेल की कमी ने कुछ विवाद पैदा किए। खादिमों ने समिति पर अनदेखी का आरोप लगाया, जबकि प्रशासन ने समय पर व्यवस्थाओं को लागू करने का आश्वासन दिया।
उर्स का यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का अद्भुत उदाहरण है, जो आपसी भाईचारे और शांति के संदेश को फैलाने का माध्यम बनता है।