हिन्दुओं के नरसंहार पर अमेरिका से उठी बुलंद आवाज़, बांग्लादेश में जारी हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन


गणेश कुमार स्वामी   2024-10-05 12:49:13



न्यूयॉर्क की सुबह ने एक मजबूत संदेश दिया जब अमेरिकी हिंदू समुदाय ने बांग्लादेश में हो रहे हिंदू नरसंहार को रोकने के लिए वैश्विक समुदाय से त्वरित कार्रवाई की अपील की। हडसन नदी के ऊपर एक विशाल बैनर उड़ाया गया, जो स्वतंत्रता और समानता के प्रतीक स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के पास चक्कर काट रहा था। यह प्रदर्शन बांग्लादेश के हिंदुओं की स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है, जो एक बार फिर विश्व समुदाय का ध्यान आकर्षित कर रहा है।

घटना का विस्तार :

1971 में हुए बांग्लादेश के विभाजन के समय, पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। इस नरसंहार के दौरान लगभग 28 लाख लोगों की हत्या की गई, और इसमें बड़ी संख्या में हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं भी दर्ज की गईं। इस घटना को 2022 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित प्रस्ताव HR 1430 में औपचारिक रूप से नरसंहार करार दिया गया। लेकिन, तब से लेकर अब तक, बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक लगातार हिंसा, अपहरण, संपत्ति हड़पने और जीवन के अधिकार से वंचित होते रहे हैं।

वर्तमान परिदृश्य और गंभीरता :

1971 में बांग्लादेश की जनसंख्या का 20 प्रतिशत हिस्सा हिंदू समुदाय का था, लेकिन आज यह संख्या घटकर 8.9 प्रतिशत रह गई है। खबरों के अनुसार, बांग्लादेश में हाल ही में 250 से अधिक हमले और 1,000 से अधिक घटनाओं की पुष्टि की गई है, जिनमें हिंदू समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया। इस प्रकार की बढ़ती हिंसा ने वहां के हिंदुओं के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है, जो अब नरसंहार की सीमा पर पहुंच चुका है।

सितांग्शु गुहा, जो बांग्लादेश हिंदू समुदाय के प्रमुख सदस्य हैं और इस विरोध के आयोजन में शामिल हैं, ने कहा, बांग्लादेश के हिंदू लगभग समाप्त होने की कगार पर हैं। उम्मीद है कि यह कदम विश्व समुदाय का ध्यान खींचेगा और संयुक्त राष्ट्र इस मामले में त्वरित कार्रवाई करेगा। अगर बांग्लादेश हिंदू मुक्त हो गया, तो यह अगला अफगानिस्तान बन सकता है, जिससे आतंकवादी गतिविधियाँ भारत और पश्चिमी देशों तक फैल सकती हैं।

अमेरिकी और वैश्विक प्रतिक्रिया:

यह विरोध केवल अमेरिका के हिंदू समुदाय तक सीमित नहीं रहा। तीन प्रमुख अमेरिकी संगठन—लेमकिन इंस्टीट्यूट फॉर जेनोसाइड प्रिवेंशन, जेनोसाइड वॉच, और इंटरनेशनल कोलिशन ऑफ साइट्स ऑफ कॉन्शियस ने पहले ही 1971 में पाकिस्तानी सेना और उनके इस्लामिक सहयोगियों द्वारा किए गए अत्याचारों को नरसंहार के रूप में मान्यता दी है। अब, प्रदर्शनकारियों का आग्रह है कि संयुक्त राष्ट्र भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए कदम उठाए।

आर्थिक दबाव का आह्वान :

इस विरोध के दौरान अमेरिका में मुख्य धारा के लोगों से अपील की गई कि वे बांग्लादेशी वस्त्रों का बहिष्कार करें। गौरतलब है कि बांग्लादेश की 85 प्रतिशत निर्यात आय वस्त्र उद्योग से आती है। प्रमुख अमेरिकी कंपनियों जैसे वॉलमार्ट, एच एंड एम, गैप इंक., टारगेट, पीवीएच कॉर्प, और वीएफ कॉर्पोरेशन से भी यह अपील की गई कि वे बांग्लादेश से सामानों का आयात तब तक रोकें जब तक वहां की हिंसा समाप्त न हो जाए और अपराधियों को न्याय के कटघरे में न लाया जाए।

यह मुद्दा सभी के लिए महत्वपूर्ण :

बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें न केवल बांग्लादेश के लिए खतरा हैं, बल्कि भारत के लिए भी यह गंभीर खतरा बन चुकी हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की सीमा पर उग्रवादी गतिविधियों का बढ़ता प्रभाव दोनों देशों में अस्थिरता पैदा कर सकता है। इस बात की भी चिंता जताई जा रही है कि अगर इस मुद्दे पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो इससे वैश्विक स्तर पर अस्थिरता फैल सकती है, जैसा कि अफगानिस्तान में हुआ था।

इस घटना के दौरान यह भी देखने में आया कि अमेरिकी यहूदी समुदाय ने भी बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों पर गहरी चिंता जताई है और इस घटना को इस्राइल में हाल ही में हुए हिंसक हमलों से जोड़ते हुए अपनी एकजुटता दिखाई है। उन्होंने कहा कि जैसे दुनिया इस्राइल के समर्थन में खड़ी हुई, वैसे ही अब बांग्लादेश के हिंदुओं के लिए भी तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

यह विरोध प्रदर्शन बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के सामने आ रही चुनौतियों की भयावहता को दुनिया के सामने रखने का एक प्रयास था। बांग्लादेश की हिंसा को लेकर अमेरिका के हिंदू समुदाय का यह विरोध दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों के लिए एक बड़ा संदेश है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं, और यदि विश्व समुदाय ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में यह हिंसा नरसंहार का रूप ले सकती है। अब, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक समुदाय इस मुद्दे पर क्या कदम उठाते हैं।