श्रावण मास में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजा-उपासना का महत्व


गणेश कुमार स्वामी   2024-07-23 01:10:00



सावन का महीना हिंदू पंचांग का पांचवां महीना होता है। यह महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। जिसमें भगवान शिव की पूजा-उपासना करने पर हर तरह की मनोकामनाएं जल्द ही पूरी होती हैं। 

हिंदू धर्म ग्रंथों में सावन के महीने को श्रावण के नाम से भी जाना जाता है। इस माह कथा सुनने और देवों के देव महादेव की विशेष पूजा का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा और मंदिरों में भोलेनाथ के दर्शन करने पर भोलेनाथ की विशेष कृपा मिलती है। 

इसके अलावा सावन के महीने में देशभर में स्थित सभी 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा-आराधना करने का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। सावन माह के पवित्र महीने के अवसर पर आइए जानते हैं भगवान महादेव के सभी 12 ज्योतिर्लिंग का धार्मिक और पौराणिक महत्व -

1- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 

देश के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। सोमनाथ मंदिर का उल्लेख शिव पुराण के अध्याय 13 में भी किया गया है। ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में मौजूद चंद्रमा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा और दर्शन अत्यंत फलदायक होते हैं।

2- मल्लिकार्जुन  ज्योतिर्लिंग

12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। ये मंदिर आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल (श्रीपर्वत) पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। माना जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में शिव पूजा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर पुण्य मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव और माता पार्वती का संयुक्त रूप है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। मल्लिका माता पार्वती का नाम है, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से मल्लिकार्जुन नाम उक्त ज्योतिर्लिंग का जगत् में प्रसिद्ध हुआ।

3- महाकालेश्वर  ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है। महाकालेश्वर को कालों का काल महाकाल नाम से जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह इसकी एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर में पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के निवेदन के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे।

4- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। सदियों पहले कोली जनजाति ने इस जगह पर लोगो की बस्तियां बसाई और अब यह जगह अपनी भव्यता और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलनाथ तीनों लोकों का भ्रमण करने के बाद हर रात को यहां पर विश्राम करने के लिए आते हैं। इस स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती चौसर खेलते हैं। 

5- केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ धाम को ही केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। यह मन्दिर उत्तरी भारत में पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जो समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम केदार खंड है। केदारनाथ मन्दिर उत्तराखंड में चार धाम और पंच केदार का एक हिस्सा है और भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। केदारनाथ धाम को भगवान शिव का बहुत ही प्रिय स्थान माना जाता है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में मिलता है। केदारनाथ धाम को ऊर्जा का बड़ा केंद्र माना जाता है।

6- भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले में भीमाशंकर नामक गांव में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। इस ज्योतिर्लिंग में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है। जिसकी वजह से इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण के साथ उसके छोटे भाई कुंभकरण का वध किया था। कुंभकरण के वध के बाद उसके पुत्र भीमा का जन्म हुआ था। भीमा जब बड़ा हुआ तो उसे भगवान राम द्वारा उसके पिता का वध किए जाने का पता चला। यह बात सुनकर वह बहुत क्रोधित हुआ और उसने श्रीराम की हत्या प्रण लिया। इसके बाद भीमा ने कई वर्षों तक ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर भीमा को सदा विजय होने का वरदान दिया। वरदान पाने के बाद भीमा ने कोहराम मचाना शुरू कर दिया। उससे मनुष्य समेत देवी-देवता भी डरने लगे। आखिरकार परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और भीमा से बचाने की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान शिव ने भीमा को युद्ध में परास्त कर दिया। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से इसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होने की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर भोलेशंकर वहीं पर स्थापित हो गए। इसलिए यह जगह भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानी जाती है। 

7- काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वनाथ का स्थान काफी विशेष है। ऐसी मान्यता है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। सावन के महीने में भगवान शिव के दर्शन के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु काशी विश्वनाथ पहुंचते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार जो प्रलय में भी प्रलय को प्राप्त नहीं होती,आकाश मंडल से देखने में ध्वज के आकार का प्रकाश पुंज दिखती है वह काशी अविनाशी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं वहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा। भगवान शिव देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया।

8- त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। कालसर्प दोष के निवारण के लिए इस ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व होता है। इस ज्योतिर्लिंग में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग है जो त्रिदेव के प्रतीक माने जाते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ। गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा।

9- वैद्यनाथ  ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। इस स्थान को रावणेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर रावण ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न के लिए अपने 9 सिरों को काटकार शिव जी को अर्पित कर दिया। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक व्यक्ति को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उस व्यक्ति ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर शिवलिंग पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया।

10- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिलिंग गुजरात के द्वारका में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार शिवजी का एक नाम नागेशं दारुकावन भी है। इस ज्योतिर्लिंग को दारुकावन नागेश्वर या दारुक वन का नागेश्वर कहा जाता है। भगवान शिव ने यहाँ राक्षस दारुक का वध किया, जिससे दुनिया को उसके अत्याचार से मुक्ति मिली। ऐसा माना जाता है कि इस कृत्य के दौरान भगवान शिव से निकली दिव्य ऊर्जा से नागेश्वर में ज्योतिर्लिंग का निर्माण हुआ। नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर।

11- रामेश्वरम  ज्योतिर्लिंग

शिव पुराण के अनुसार रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का निर्माण स्वयं भगवान श्रीराम ने किया था। भगवान राम के द्वारा बनाए जाने के कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम रामेश्वरम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण से युद्ध करने से पहले विजय की कामना लिए हुए इसी स्थान पर रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की साधना की थी। जिसके बाद भगवान शिव यहां ज्योति रूप में प्रकट हुए।

12- घुश्मेश्वर  ज्योतिर्लिंग

यह ज्योतिलिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। घुश्मा के मृत पुत्र को जीवित करने के लिए अवतरित प्रभु शिव ही घुमेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। इसका स्थान द्वादश ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह ज्योतिर्लिंग अजन्ता एवं एलोरा की गुफाओं के देवगिरी के समीप तड़ाग में अवस्थित है।

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